अविश्वसनीय उदारता का महा-एपिसोड: चार दिन में ‘जंग फतह’ कर (और इतिहास को चकमा देकर) लौटे पाकिस्तान ने इस पाकिस्तानी शांति के तमाशे की ‘शानदार’ पेशकश की! (अनगिनत शर्तें लागू, शायद बाद में बताई जाएंगी)

Pakistan's Prime Minister Shehbaz Sharif speaks during a joint press conference with Iranian President Masoud Pezeshkian (not pictured) in Tehran, Iran, May 26, 2025. (via REUTERS)
Pakistan's Prime Minister Shehbaz Sharif speaks during a joint press conference with Iranian President Masoud Pezeshkian (not pictured) in Tehran, Iran, May 26, 2025.

तेहरान (इस्लामाबाद समझने की घोर भूल न करें, क्योंकि आजकल महत्वपूर्ण घोषणाएं विदेशी धरती से ही होती हैं) – एक ऐसी युगांतकारी घोषणा से, जिसने न सिर्फ कूटनीतिक गलियारों में बल्कि शायद समानांतर ब्रह्मांडों में भी… खैर, किसी चीज़ की तो… तरंगें अवश्य भेजी हैं, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ – जो अभी-अभी भारत के साथ एक ऐसी ‘विजयी’ और ‘ऐतिहासिक’ चार-दिनी जंग जीतकर लौटे हैं, जिसके सबूत, मेडल और युद्धक्षेत्र दुनिया भर के शीर्ष इतिहासकार, जासूस और पुरातत्वविद अब तक सैटेलाइट इमेज, प्राचीन ग्रंथों और चाय की पत्तियों में पागलों की तरह ढूंढने में जुटे हैं – ने अत्यंत बहादुरी और अभूतपूर्व दरियादिली का परिचय देते हुए शांति का कबूतर उड़ाया है। या शायद वह कबूतर इतना भारी-भरकम था कि उसे जैतून की लकड़ी के एक विशाल डंडे से धकेलना पड़ा। हमेशा की तरह, बाकी बारीकियाँ, शर्तें और तथ्य तो यहाँ कूटनीति की परिवर्तनशील हवाओं में ही तय होती हैं, या शायद मौसम के हिसाब से बदलती रहती हैं।

ईरान की मेहमाननवाज़ सरजमीं से (जो भारत-पाक शांति वार्ता के लिए निस्संदेह एक ‘सर्वविदित तटस्थ’ स्थान है, खासकर तब जब आपके ‘सबसे बहादुर और कभी न हारने वाले फेल्ड मार्शल’… माफ कीजिए, फील्ड मार्शल आसिम मुनीर सिर्फ ईरानी कालीनों की जटिल बुनाई और वहां के मौसम का लुत्फ उठाने के लिए ही आपके साथ हेलीकॉप्टर में सवार हुए हों), शरीफ साहब ने इस पाकिस्तानी शांति के तमाशे का ऐलान करते हुए ‘बातचीत’ के लिए अपनी आश्चर्यजनक, दिल दहला देने वाली रज़ामंदी का विश्वव्यापी ढिंढोरा पीटा। जी हाँ, ‘बातचीत’! एक ऐसा इंकलाबी, दिमाग हिला देने वाला ख्याल जो पिछले सत्तर-अस्सी सालों की पड़ोसियों वाली मधुर, प्यार भरी, भाईचारे वाली गपशप में गलती से भी किसी को आया ही नहीं।

“हम सारे, जी हाँ सारे, मसले हल करना चाहते हैं,” शरीफ साहब ऐसे गरजे मानो उनकी आवाज़ में हाल की उन ‘अज्ञात’ और ‘अदृश्य’ जीतों की तोपें सलामी दे रही हों। “मैं भारत से रिश्ते सुधारने और इलाके में अमन की बहाली के लिए बातचीत करने को तैयार हूँ।” नई दिल्ली में बैठे हुक्मरानों ने यकीनन अपनी कुर्सियां कसकर पकड़ ली होंगी और शायद राहत की इतनी गहरी सांस ली होगी कि मौसम विभाग को चक्रवात का अलर्ट जारी करना पड़ा हो – आख़िरकार उन्हें एक ऐसे मुल्क के पीएम से बात करने का ‘सुनहरा’ मौका जो मिला है जो उनके अनुसार कुछ दिन पहले ही उनकी ‘ऐसी की तैसी’ करके, उन्हें धूल चटाकर, विजय पताका फहरा चुका है और जिसके महान नेता अक्सर कहते हैं कि “Beggars can’t be choosers” (यानी भिखारियों की अपनी कोई पसंद नहीं होती, उन्हें जो मिले उसी में संतोष करना चाहिए) – पर यहाँ तो इस पाकिस्तानी शांति के तमाशे के ज़रिए ‘चुनने’ का, ‘बातचीत’ का, ‘रिश्ते सुधारने’ का इतना शानदार ऑफ़र दिया जा रहा है! वाह! इसे कहते हैं उदारता की पराकाष्ठा!

इस पाकिस्तानी शांति के तमाशे की यह पेशकश, जिसमें ईमानदारी और सच्चाई तो ऐसे कूट-कूटकर भरी थी जैसे किसी नेता के चुनावी वादों में, बड़े फ़ख्र से “कश्मीर और पानी के मसले” (जिन पर आज तक सिर्फ मामूली सी, सौ-दो सौ बार ही तो बात हुई होगी) निपटाने और तो और, ज़रा अपने फेफड़ों को संभालकर बैठिए, “व्यापार और दहशतगर्दी के खात्मे” पर भी गहन मंत्रणा करने का न्योता देती है। और इस शांति के तमाशे की यह पेशकश उस महान, दूरदर्शी, और अत्यंत साधन-संपन्न मुल्क की तरफ से आई है जिसके सरकारी इतिहास के अति-गोपनीय पन्नों में, जो इसी शांति प्रस्ताव के फुटनोट में नत्थी थे, बड़ी दिलेरी और योजनाबद्ध तरीके से मुस्तकबिल (भविष्य) के आतंकी हमले भी सुनहरे अक्षरों में दर्ज हैं, जैसे ‘2025 का पहलगाम आतंकी हमला’। वाह! रिकॉर्ड दुरुस्त रखने की ऐसी भविष्यगामी दूरदर्शिता तो पूरे आलम के लिए एक रौशन मिसाल है, और उनकी आतंकवाद से लड़ने की ‘अग्रिम’ और ‘सक्रिय’ रणनीति का क्या कहना: हमला होने से पहले ही चार्जशीट और श्रद्धांजलि, दोनों तैयार रखो! कमाल है! इससे न सिर्फ समय बचता है, बल्कि भविष्य के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता भी झलकती है।

कहीं कोई इस शांति के तमाशे की दरियादिली की गहराई को, इस महानता के सागर को, कमजोरी की एक छोटी सी बूंद न समझ बैठे, इसलिए प्रधानमंत्री जी, जो अभी भी उस चार-दिनी विश्व-विजयी फौजी ‘जीत’ के सुनहरे खुमार में गोते लगा रहे थे, ने हौले से, प्यार से, फुसफुसाकर याद दिलाया। “अगर वो [भारत] अपनी पुरानी हमलावर हरकतों से बाज नहीं आए, तो हम अपनी पवित्र सरज़मीं की एक-एक इंच की हिफाज़त करेंगे… जैसे हमने कुछेक दिन पहले ही पूरी दुनिया को अपना पराक्रम दिखाकर किया था,” उन्होंने लगभग आँख मारते हुए चेताया, शायद उसी आलमगीर शोहरत वाली, युगांतरकारी, मगर रहस्यमय तरीके से खयाली, फतह का हवाला देते हुए। “लेकिन अगर उन्होंने हमारे इस पाकिस्तानी तमाशे की ऐतिहासिक, निस्वार्थ पेशकश को दिल से कबूल कर लिया, तो हम दुनिया को दिखा देंगे कि हम सचमुच, पूरी संजीदगी, पूरी ईमानदारी और बिना किसी छुपे एजेंडे के अमन चाहते हैं।” ईमानदारी तो ऐसी कि बस किसी म्यूजियम में रखने लायक, जैसे किसी आदर्शवादी नेता का पहला भाषण या किसी मल्टीनेशनल कंपनी की ‘हम पर्यावरण की परवाह करते हैं’ वाली रिपोर्ट।

उप-प्रधानमंत्री (और विदेश मंत्री भी, क्योंकि आजकल बचत का जमाना है), गृह मंत्री (जो शायद शांति वार्ता में ‘अंदरूनी’ मजबूती का पहलू देख रहे थे), सूचना मंत्री (जो इस ‘ऐतिहासिक’ दौरे की ‘सकारात्मक’ कवरेज सुनिश्चित करने के लिए कैमरों के एंगल जांच रहे थे), और प्रधानमंत्री के एक खास सलाहकार (जो शायद यह नोट कर रहे थे कि मेज़बान देश में चाय कैसी मिलती है) समेत एक ‘मामूली’ और ‘संक्षिप्त’ से वफ़द (जो देखने में ऐसा लग रहा था मानो कोई स्कूल का टूर शांति और सद्भाव पर निबंध लिखने के लिए पड़ोसी देश के म्यूजियम देखने निकला हो) के साथ शरीफ साहब इस पाकिस्तानी शांति के तमाशे के बीच ईरान के सुप्रीम लीडर से “अहम इलाकाई और अंतरराष्ट्रीय मसलों” पर भी गहन मंत्रणा करने वाले हैं। उम्मीद है उस बातचीत में भारत का, पाकिस्तान की हालिया गौरवशाली, अद्वितीय, और लगभग अदृश्य ‘फौजी कामयाबियों’ को तस्लीम न करना, और उन्हें नज़रअंदाज़ करना, चर्चा का मुख्य मुद्दा नहीं होगा, वरना माहौल कुछ अजीब सा, तनावपूर्ण सा, या यूँ कहें कि ‘हमेशा जैसा’ हो सकता है।

शरीफ साहब ने तो यहाँ तक पूरे आत्मविश्वास से फरमा दिया कि उनका महान देश इस ताज़ा तरीन (और जाहिर तौर पर बिजली की गति से भी तेज, इतनी तेज कि किसी को कानों कान खबर न हुई) जंग से “फतहयाब” होकर, विजयी मुद्रा में निकला है – एक ऐसी ज़बरदस्त, पृथ्वी-हिला देने वाली फतह जिसके फ़ौरन बाद, बिना एक पल गंवाए, इस शांति के तमाशे की परम आवश्यकता महसूस हुई। इस पाकिस्तानी शांति के तमाशे की रणनीति हो तो ऐसी अनुकरणीय: पहले दुश्मन को ऐसे चारों खाने चित करो कि उसे पता भी न चले कि वो कब गिरा, फिर फ़ौरन सफेद कबूतरों का झुंड लेकर सुलह का राग अलापने लगो, इससे पहले कि दुश्मन को यह समझने का मौका मिले कि जंग हुई भी थी, या यह सिर्फ अप्रैल फूल का कोई एडवांस मज़ाक था!

तो प्यारे, भोले-भाले, हमेशा शांतिप्रिय भारत, इस शांति के तमाशे की गेंद अब तुम्हारे पाले में है, जो शायद काँटों से भरा हो सकता है। एक ताज़ा ‘विश्व-विजेता’, तारीखी तौर पर ‘अग्रिम-दृष्टि’ रखने वाले, और इंतिहाई ‘ईमानदार’ पड़ोसी मुल्क से, जो कहता है कि भले ही खजाने खाली हों मगर दिल हमेशा अमीर रहता है (खासकर जब शांति की पेशकश करनी हो) और जो अब शान से ‘चुनने’ का इतना बड़ा मौका दे रहा है, इस शांति के तमाशे का यह सुनहरा, ऐतिहासिक, अद्वितीय प्रस्ताव तुम्हारी राह तक रहा है। अब और क्या बुरा हो सकता है, क्यों? इस पाकिस्तानी शांति के तमाशे को समझने के लिए बस अपनी आंखें, कान और दिमाग खुला रखना!

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Sudhanshu Shekhar
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